
लैलूंगा कुंजारा: अवैध कब्जे का गढ़ और ‘ब्रांड अम्बेसडर’ बने श्रीमान् आशीष सिदार
लैलूंगा (रायगढ़): अगर आपको कभी लगे कि देश में अवैध कब्जों और अतिक्रमण की कला लुप्त हो रही है, तो लैलूंगा कुंजारा ज़रूर आइए! यहाँ अवैध कब्जों का समंदर है, और उसमें गोता लगाकर तैरने वालों में एक नाम है — “श्रीमान् आशीष सिदार”। जी हां, यह वही नाम है, जो इन दिनों लैलूंगा में अवैध कब्जा कला के “ब्रांड अम्बेसडर” के तौर पर चर्चाओं में है।
जब लैलूंगा बन गया कब्जाधारियों का प्रशिक्षण केंद्र
लैलूंगा कुंजारा, जो कभी अपनी शांति और सादगी के लिए जाना जाता था, अब अवैध कब्जाधारियों का एक “प्रशिक्षण केंद्र” बन गया है। अगर आपको सरकारी ज़मीन हथियाने या अवैध कब्जा जमाने में दिलचस्पी है तो आपको बस लैलूंगा में कदम रखने की देर है! यहाँ आपको “गुरु” से लेकर “कब्जाधारी प्रमाणपत्र” तक सब मिलेगा।
लेकिन यह सब संभव हुआ है एक महान शख्सियत के चलते — श्रीमान् आशीष सिदार, जिनका नाम अब लैलूंगा में “कब्जाधारियों के देवता” या “ब्रांड अम्बेसडर” के तौर पर लिया जाता है।
अवैध कब्जे का “मास्टरक्लास”
आशीष सिदार महोदय लैलूंगा में अवैध कब्जे के “मास्टरक्लास” चला रहे हैं। सीखने वालों की कोई कमी नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि अगर आप चाहें तो एक सप्ताह में “सरकारी ज़मीन” हथियाने का डिप्लोमा ले सकते हैं। पाठ्यक्रम में शामिल है:
चरण 1: “सरकारी ज़मीन” की पहचान करने का तरीका
चरण 2: “पचास साल पुराने कागज” जाली बनाने का गुर
चरण 3: प्रशासन और कानून से बचने के “101 उपाय”
चरण 4: विरोधियों का “मौखिक समर्पण” करवाने के जादुई नुस्खे
यकीन मानिए, यह सब लैलूंगा में अब “लोककला” का हिस्सा बनने लगे हैं!
प्रशासन बने “मूकदर्शक”
लैलूंगा में प्रशासन “मूकदर्शक” ही नहीं, बल्कि “मूकदर्शक सम्मान समिति” का हिस्सा बनने लगे हैं। अवैध कब्जे होते रहे, प्रशासन कभी दौड़ा तो कभी रेंगता हुआ घटनास्थल तक पहुँचा, और लौटकर बस रिपोर्ट दर्ज करने में अपना कर्तव्य निभाकर इतिश्री कर ली। “कार्रवाई होगी” का रटा-रटाया जुमला अब ग्रामीणों में हास्य और व्यंग्य का हिस्सा बन गया है।
“लैंड माफिया” या “लैंड स्टार”?
लैलूंगा में अवैध कब्जाधारी “लैंड स्टार” बनने लगे हैं। कभी गली-चौराहों में साधारण सा बैठने वाला व्यक्ति अब अवैध कब्जों से करोड़ों का मालिक बनने का सपना साकार कर रहा है। अगर आप कभी लैलूंगा में जाएं तो इन “कब्जाधारियों” की गाड़ियाँ, बंगले और ठाठ-बाट देखकर हैरान रह जाएँगे! लैलूंगा में अवैध कब्जाधारी होना “राजसी जीवन” का पर्याय बन गया है।
ग्रामीणों का दर्द
कुंजारा जैसे गांव में गरीब ग्रामीण अब अपनी ही ज़मीन से बेदखल हो रहे हैं। जिनके पास कभी दो जून की रोटी का साधन हुआ करता था, वे आज या तो दूसरों के खेतों में मजदूरी कर रहे हैं या प्रशासन और कब्जाधारियों की चौखट में न्याय के लिए चक्कर काट रहे हैं। मगर न्याय है कि “दूर के ढोल सुहावने” लगे हुए हैं!
ब्रांड अम्बेसडर का जलवा
अब बात करें “ब्रांड अम्बेसडर” यानी श्रीमान् आशीष सिदार की — तो भाई, क्या कहने! इनकी गिनती लैलूंगा में अब उन लोगों में होने लगी है जो “कानून और प्रशासन दोनों से ऊपर” चलते हैं। अवैध कब्जा करवाने में इनका नाम “स्वर्णाक्षरों में” दर्ज है। प्रशासन तो जैसे इनका “समर्थक” या “फैन क्लब” है — जो कभी इनके खिलाफ कदम उठाने का नाम तक नहीं लेता।
ग्रामीण तो यह तक कहने लगे हैं कि अगर “कब्जाधारी पुरस्कार” या “भूमि हथियाने का नोबेल पुरस्कार” होता तो वह श्रीमान् सिदार ही जीतते!
सत्ता और प्रशासन का “गठबंधन”
चर्चा है कि लैलूंगा में प्रशासन और सत्ता का अवैध कब्जाधारियों से एक “गुप्त गठबंधन” है। वरना क्या कारण है कि दर्जनों शिकायतें मिलने के बावजूद प्रशासन के कानों में जूँ तक नहीं रेंगती? ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रशासन चाह ले तो लैलूंगा में एक दिन में सभी अवैध कब्जे खत्म हो सकते हैं, मगर जब “मिलीभगत” है तो “कौन करे एक्शन”?
आगे क्या होगा?
लैलूंगा में अवैध कब्जाधारियों का दबदबा कब तक रहेगा? क्या प्रशासन कभी नींद से जागेगा? क्या गरीब ग्रामीणों को न्याय मिलेगा? या फिर लैलूंगा में अवैध कब्जाधारी एक “समांतर सत्ता” स्थापित कर लेंगे? ये सवाल आज हर लैलूंगा और कुंजारा निवासी के जेहन में गूंज रहे हैं।
समापन: कब तक सहेंगे ग्रामीण?
लैलूंगा कुंजारा में जो हो रहा है वह लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के लिए बेहद चिंताजनक है। अगर प्रशासन और सत्ता में बैठे जिम्मेदार लोग अब भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब लैलूंगा में “कब्जाधारियों का राज” होगा और गरीबों, मजदूरों और आदिवासियों का नामो-निशान मिट जाएगा।
लेकिन क्या प्रशासन और सरकार लैलूंगा को बचाने में आगे आएगी? या फिर श्रीमान् “ब्रांड अम्बेसडर” का कद और बढ़ता रहेगा? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा!
