
घरघोड़ा गायत्री मंदिर प्रांगण में बह रही है श्रीमद्भागवत की अमृत वर्षा


*घरघोड़ा में कथा वाचक आचार्य श्री दीपक जी महाराज के मुख अमृतवाणी से 28 अगस्त से आरंभ है श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ
*गजेन्द्र मोक्ष, वामन अवतार, श्रीराम कथा, श्रीकृष्ण कथा, नंदोत्सव कथा सुन मग्नमुग्त हो गये श्रोता
घरघोड़ा गायत्री मंदिर प्रांगण में सैकड़ों की संख्या में भागवत कथा सुनने लोग पहुंच रहे हैं, गोयल परिवार द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा का आज चतुर्थ दिवस में भारी संख्या उमड़ी आचार्य दीपक जी महाराज गजेन्द्र मोक्ष कथा श्रवण कराते हैं व परीक्षित पूर्व जन्म में गजेंद्र का नाम इन्द्रद्युम्न था। वह द्रविड देश का पाण्ड्वंशी राजा था। वह भगवान का बहुत बड़ा सेवक था। उसने अपना राजपाट छोड़कर मलय पर्वत पर रहते हुए जटाएँ बढ़ाकर तपस्वी के वेष में भगवान की आराधना था। एक दिन वहाँ से अगस्त्य मुनि अपने शिष्यों के साथ गुजरे और उन्होंने राजा को एकाग्रचित होकर उपासना करते हुए देखा। अगस्त्य मुनि ने देखा कि यह राजा अपने प्रजापालन और गृहस्थोचित अतिथि सेवा आदि धर्म को छोड़कर तपस्वी की तरह रह रहा है। अत: वह राजा इन्द्रद्युम्न पर क्रोधित हो गये। और क्रोध में आकर उन्होंने राजा को शाप दिया कि हे राजन् तुमने गुरुजनों से बिना शिक्षा ग्रहण किये हुए अभिमानवश परोपकार से निवृत्त होकर मनमानी कर रहे हो अर्थात् हाथी के समान जड़ बुद्धि हो गये इसलिये तुम्हें वही अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त है। राजा ने इस श्राप को अपना प्रारब्ध समझा। इसके बाद दूसरे जन्म में उसे आत्मा की विस्मृति करा देने वाली हाथी की योनि प्राप्त हुई। परन्तु भगवान की आराधना के प्रभाव से हाथी होने पर भी उन्हें भगवान की स्मृति हो ही गयी। भगवान श्रीहरि ने इस प्रकार गजेन्द्र का उद्धार करके उसे अपने लोक में स्थान दिया। आचार्य दीपक जी महाराज ने राम जन्म एवं कृष्ण जन्म पर व्याख्यान कर भागवत कथा का महत्व बताते हुए प्रभु राम व कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। पाठक ने कहा कि कलयुग में भागवत की कथा सुनने से जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही जन्म जन्मांतर के पापों का अंत भी होता है। राम जन्म के प्रसंग के दौरान श्रीराम विवाह प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मां सीता के विवाह के लिए हो रहे धनुष यज्ञ प्रकरण के दौरान जब कोई भी राजा धनुष नहीं तोड़ पाए तो जनक जी परेशान हो गए। इसके बाद गुरू विश्वामित्र जी बोले हे राम उठो और धनुष को तोड़कर जनक के दुख को दूर करो। गुरू की आज्ञा पाकर भगवान राम उठे और धनुष को तोड़ दिया। कथा में भक्तों को श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनाई। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की कथा भक्तों को श्रवण कराते हुए कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो अपने आप जेल के ताले खुल गए और वासुदेव की बेड़ियां खुल गईं। वासुदेव भगवान ने श्रीकृष्ण इस संसार के पालनहार हैं। एक टोकरी में लेकर यमुना नदी को पार कर यशोदा मां और नंदलाल के पास छोड़ जाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने दुष्टों का नाश करने के लिए ही धरती पर जन्म लिया था। इस धरती को अधर्म से मुक्ति दिलाई। कई जन्मों के पापों का क्षय हो जाता है। हमें भागवत कथा सुनने के साथ साथ उसकी शिक्षाओं पर भी अमल करना चाहिए। प्रसंग में उन्होंने बताया कि वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह शिक्षा दी कि दंभ तथा अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह भी बताया कि यह धनसंपदा क्षणभंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने कहा कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईष्र्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यदि हम संसार में पूरी तरह मोहग्रस्त और लिप्त रहते हुए सांसारिक जीवन जीते है तो हमारी सारी भक्ति एक दिखावा ही रह जाएगी। कथा के दौरान वामन अवतार की झांकी दिखाई गई और तेरे द्वार खड़ा भगवान भगत भर दे रे झोली पर श्रद्घालु भाव विभोर हो उठे।