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Monday, June 23, 2025
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कबीर प्राकट्य जयंती विशेषांक

| सदगुरु कबीर की उपयोगिता ||
आओ अपने अन्दर कबीर को ढूंढते है।

कबीर प्राकट्य जयंती विशेषांक

|| सदगुरु कबीर की उपयोगिता ||
आओ अपने अन्दर कबीर को ढूंढते है।

अथाह सागर जैसा व्यक्तित्व उपरोक्त संकटकाल में भारतीय नभ पर सत्य को तलाशने एवं समाज को तराशने वाले विराट व्यक्तित्व कबीर ज्ञान लोक से सबको आलोकित कर दिया जिसे हम महान संत सम्राट कबीर के रूप में जानते हैं। सदगुरू कबीर के प्राकट्य के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है परंतु कबीरपंथी परंपरा के अनुसार कबीर साहब का प्राकट्य काशी के लहर तारा में दिव्य कमल पुष्प पर हुआ। उन्हें नीरु नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति ने पालन पोषण किया। विक्रम संवत 1455 सन तदनुसार 1576 माना जाता हैं इस प्रकार कबीर की कुल आयु 121 वर्ष मानी गयी है। सदगुरु कबीर साहब का व्यक्तित्व अथाह सागर है।

वर्तमान देश काल और व्यवस्था में कबीर साहब का ज्ञान अत्यंत आवश्यक प्रतीत होता है, जहां भी देखो हर तरफ मत मजहब पंथ और संप्रदाय के नाम पर संघर्ष और रक्त पात का तांडव होता रहा है चारों तरफ अशांति का वातावरण छाया हुआ है, संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ रही है, धर्मान्धता पैर पसार रही है। ऐसी स्थिति में कबीर का संदेश मानव मात्र के लिए शांति और आनंद की महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है | अतः आज के परिपेक्ष्य में कबीर साहब की उपयोगिता बहुत प्रासंगिक है।

कबीर का जीवन काल भी कम संघर्षपूर्ण नहीं रहा, पूरा समाज हिंदू और मुसलमान ऐसे दो वर्गों में विभाजित था कबीर ने दोनों को फटकार लगाई। और उन्होंने हिंदुओं को कहा

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार |
याते तो चाकी भली, पीस खाय संसार ||
और मुसलमानों को भी फटकार लगाई कहा

कांकर पाथर जोड़ के, मस्जिद लियो बनाय |
ता चढ़ी मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ||

यही कारण था कि क्या हिंदू और क्या मुसलमान सभी सदगुरु कबीर के प्यारे हो गए। कबीर साहब दोनों को लगता था कि यह मेरे लिए आए हैं।

आज भी वैश्विक स्तर पर आतंकवाद मजहब की लड़ाई बनकर रह गई है । वे तो कबीर ही थे, जो दोनों को सच्ची राह दिखाकर शांत कर दिया। क्या मुल्ला और क्या मौलवी तथा क्या पंडित सभी उनके अनुयायी हो गए।

आज की परिस्थितियां भी उस समय से भिन्न नहीं है, कबीर का दर्शन ही विश्व में शांति और एकता कायम रखने में समर्थ है | आज की विषमताओं में मंदिर और मस्जिद का मुद्दा ही छाया हुआ है, सभी अपने इष्ट को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगे हुए हैं, ऐसे समय में कबीर ने अपना सन्देश दिया

भाई रे दो जगदीश कहां से आया, कहु कौने बौराया |
अल्लह् राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया ||

अर्थात हम सबों का सिरजनहार तो एक ही है ना कि दो पहले के बजाय विकट परिस्थिति तो आज है, अतः ज्यादा उपयोगिता उनके दर्शन की और उनके विचारों की आज है।

वही मोहम्मद वही महादेव, ब्रह्मा आदम कहिये |
को हिंदू को तुरुक कहावै, एक जमी पर रहिये ||

यह कबीर साहब का वह ज्ञान है जो मानव को मानव बनाता है, आज तो लोगों ने धरती, तक जलवायु को भी बांट लिया है | जबकि जो आपके जीवन का परम तत्व है वह शब्द नहीं है, शब्द तो काय है । यथा कबीर ने कहा

शब्द शब्द सब कोई कहे, वह तो शब्द विदेह |
जिभ्या पर आवै नहीं, निरखि परखि करि नेह ||

ऐसे अनुपम अद्वितीय ज्ञान को हमें विस्मृत नहीं होने देना चाहिए |

कबीर की एक-एक पंक्ति पर अच्छे-अच्छे प्रवचन दिए जा सकते है, परन्तु जब तक उसकी वाणी व्यव्हार में नहीं उतरेगा तब तक हम इस तनाव और अवसाद से परिपूर्ण जीवन के झंझावातों से निजात नहीं पा सकेंगे |आज वर्तमान युग में भी कबीर साहेब के एक एक शब्द बहुत उपयोगी है, उन्होंने कहा

करनी करे सो पूत हमारा, कथनी कथे सो नाती |
रहनी रहै सो गुरु हमारा, हम रहनी के साथी ||

अर्थात रहनी गहनी, कथनी करनी में एकरूपता होने पर ही जीवन में सुख शांति आ सकती है, यदि • ऐसा नहीं करते हैं तो मानो हम अशांति को अपने जीवन में आमंत्रित कर रहे हैं। अतः निश्चित रूप से कबीर का ज्ञान उसका प्रवचन उसका आचरण दैनिक जीवन में अत्यंत उपयोगी है, कबीर की उपयोगिता सिद्धांत से ज्यादा व्यवहार में स्वीकार करने योग्य है और यह समझना भी होगा कि जो कुछ किया जाय उसे पूजा समझ कर करें। यथा

जहं जहं डोलौं सो परिकरमा, जो कुछ करों सो पूजा |
जब सोवौ तब करों दंडवत, भाव न राखों दूजा ||

अर्थात कबीर का ज्ञान समाज को मानन्दियों और पोथी पुराणों तथा रीति-रिवाजों से बहुत आगे ले जाने में सर्व समर्थ है | इसीलिए सदगुरु कबीर कहते हैं

तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन की देखी |

अर्थात- समाज को सत्य तक पहुंचाने कबीर साहब आज भी कटिबद्ध हैं, पर संसार तो संसार है ना अंधविश्वास और चमत्कार को ही नमस्कार करने में अपनी भला देखती हैं | तब भी कबीर उनसे दोस्ती ही करना चाहते हैं और कह उठते

हैं ठीक है मैं ही बुरा हूं।

कबीर हम सबसे बुरे, हमसे भल सब कोय |
जिन ऐसा करि जानिया, मीत हमारा सोय ||

कबीर के ज्ञान की उपयोगिता गर्भावस्था से लेकर अंत्येष्टि तक परम उपयोगी है, कबीर के ज्ञान की उपयोगिता भारत के लिए ही नहीं वरन समस्त वसुधा के लिए परम उपयोगी है | अब लौटना कैसा, कबीर ने कहा

यह संसार सकल है मैला, राम गहे ते सूचा |
कहै कबीर राम नहीं छाड़ो; गिरत परत चढ़ी ऊंचा||

तुम फिसल भी जाओ पर भी अपने राम को नहीं छोड़ना, पुनः उठकर अपने साधना में लग जाना और इसी को अपना संबल बना कर हम सभी कबीर के बताएं मार्ग पर एकजुट होकर चले सिद्ध कर दें कि कबीर का व्यक्तित्व और कबीर का करतित्व ही आज वर्तमान के झंझावातों से विश्व को उबार सकता है।
कबीर साहब का निर्वाण गोरखपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा मगहर नगर पंचायत में हुआ, उस समय मनगढंत विचारधाराओं में काशी में मृत्यु होगी उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी, मगहर में मृत्यु पर गधायोनी जैसे मिथ्या बताते कर्म के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति होगी। राजा वीरसिंह बघेला ने गुरु व बिजली खान ने पीर माने मगहर में अनुयायी हुए। सदगुरु की निर्वाण स्थली आज भी प्रासंगिक है जहां हिन्दू समाधी बनाकर पूजा करतें हैं वहीं मुसलमान मजार बनाकर नमाज पढतेहैं, समरसता भाईचारे का संदेश देता हुआ यह स्थल मानवता का जीता जागता उदाहरण

सदगुरु कबीर साहेब जगत वंदनीय है और जगत का गुरु है संतों के सम्राट है हम ऐसे महामानव के चरणों में शत-शत बंदगी ।

🙏|| सादर साहेब बन्दगी ||🙏

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