
बच्चो द्वारा घर घर छेर छेरा मांगते नजर आये,
सारंगढ़: अंतर्गत ग्राम अमलीडीपा में बच्चों द्वारा सुबह सुबह घर घर में अद्भुत ख़ुशी की लहर नजर आयी जिसमे ओ झोला टुकना लेकर छेर छेरा मांगते दिखे, इस बार कोरोना की वजह से थोड़ा धीमी गति से त्यौहार मनाया गया हैँ,
यह हम छत्तीसगढ़िया लोगों के लिए सिर्फ त्यौहार नहीं: छत्तीसगढ़ की एक परंपरा के रूप में मनाया जाता हैँ! जाहा हर छत्तीसगढ़िया इस साल के दिन के लोकपर्व त्यौहार में शामिल हुआ करता हैँ,
कैसे और कब शुरू हुआ छेरछेरा पर्व.?
बाबू रेवाराम की पांडुलिपियों से पता चलता है, की कलचुरी राजवंश के कोसल नरेश “कल्याणसाय” व मण्डल के राजा के बीच विवाद हुआ, और इसके पश्चात तत्कालीन मुगल शासक अकबर ने उन्हें दिल्ली बुलावा लिया। कल्याणसाय 8 वर्षो तक दिल्ली में रहे, वहाँ उन्होंने राजनीति व युद्धकाल की शिक्षा ली और निपुणता हासिल की।
8 वर्ष बाद कल्याणसाय, उपाधि एवं राजा के पूर्ण अधिकार के साथ अपनी राजधानी रतनपुर वापस पंहुचे। जब प्रजा को राजा के लौटने की खबर मिली, प्रजा पूरे जश्न के साथ राजा के स्वगात में राजधानी रतनपुर आ पहुँची। प्रजा के इस प्रेम को देख कर रानी फुलकेना द्वारा रत्न और स्वर्ण मुद्राओ की बारिश करवाई गई और रानी ने प्रजा को हर वर्ष उस तिथि पर आने का न्योता दिया। तभी से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने के लिए छेरछेरा पर्व की शुरुवात की गई। राजा जब घर आये तब समय ऐसा था, जब किसान की फसल भी खलिहानों से घर को आई, और इस तरह जश्न में हमारे खेत और खलिहान भी जुड़ गए।
लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। गाँव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं और अन्न का दान माँगते हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गाँव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा माँगने वालों को दान करते हैं।
‘छेर छेरा ! माई कोठी के धान ला हेर हेरा !’ यही आवाज़ आज प्रदेश के ग्रामीण अंचल में गूंजी और दान के रूप में धान और नगद राशि बांटी गई। राज्य का राजा घर आये या खेतो की फसल, एक तरह से जब खुशी आपके दरवाज़े दस्तक दे यही है छेरछेरा पर्व।