
बरौद कालरी:- बरौद उपक्षेत्र बरघाट से लेकर मुकेश के होटल तक विभिन्न कोयला व्यापारियों के कार्यालय उपस्थित है जहां से सैकड़ों खाली व कोयला लदी वाहनों के कागजात बनाये जाते हैं अक्सर देखा जाता है कि वाहन चालको द्वारा अपनी गाड़ियों को सड़क के दोनो किनारों पर जहां जगह दिखलाई देती है। गाड़ियां खड़ी कर बिल्टी बनवाने आ जाते हैं और जब तक वह पुनः अपने ड्राइविंग सीट पर आकर फिर अपने वाहन को आगे न बढ़ाये तब तक जाम लगी रहती है। बताया जाता है कि बिल्टी बनाने के बावजूद भी वाहन चालक बरघाट में ही अन्य कार्यो को लगे हाथ निपटाने में मशगूल हो जाने के परिणाम स्वरूप असमय हर घड़ी लग जाती है,जाम राहगीर व दुपहिये वाहन चालक तो किसी तरह निकल लेते हैं, फंस जाती है यात्री वाहने और चारपहिए वाली वाहने आधा घण्टे या कभी कभी एक घंटो तक की जाम लगी रहती है। जाम हटाने के लिए ना तो एसईसीएल की और ना ही घरघोड़ा पुलिस की टीम रहती है। स्वयं प्रभावितों द्वारा बड़ी मशक्कत से जाम को खुलवाई जाती है। यह अनोखा मंजर यहां दिन में और रात में कभी भी देखी जा सकती है।


यात्री बसे अक्सर परिवर्तित मार्ग से चली जाती है बरघाट में कोयला लदी वाहनों की एक के पीछे एक निरंतर चल रही हजारों गाड़ियों की पंक्ति टूटती दिखलाई ही नहीं देती अक्सर जाम असमय लगने से रायगढ़ धरमजयगढ़ या अम्बिकापुर धरमजयगढ़ कुडुमकेला बरौद घरघोड़ा आने वाली यात्री बसे अपने परिवर्तित मार्गो से जाती है इसी तरह रायगढ़ धरमजयगढ़ घरघोड़ा पत्थलगांव के रास्ते अम्बिकापुर जाने वाली यात्री बसे बरघाट में जाम की खबर से घरघोड़ा जयस्तंभ से ही लैलुंगा के रास्ते चल पड़ती है इधर टेरम फगुरम बरघाट कुडुमकेला गेरसा के यात्रीगण बसों का राह जोहते ही रह जाते है |
जाम की वजह से चिकित्सा वाहन, प्रशासनिक अधिकारी की वाहन हो या जनप्रतिनिधियों की ही क्यों ना हो यहां आकर सभी वर्गो के लोगों को जाम में घंटों फंसते देखा जा सकता है कई यात्री रेल्वे के रिजर्वेशन से ही समय पर रायगढ़ स्टेशन नहीं पहुंच पाने से जिनकी ट्रेन छूट जाती है!
ग्रामों में उड़ते धूल डस्ट से लोगों का हुआ जीना बेहाल जामपाली, बरौद व बिजारी खदानों से निकलने वाली कोयला लदी भारी वाहनों के उड़ते धूल डस्ट से लोग हलाकान व परेशान हो उठे हैं। एसईसीएल की तीनों खदानों से राज्य मार्ग में सैकड़ों नहीं हजारों हजार गाड़ियां एक के बाद एक निरंतर दिन रात आवाज करते ही रहती है, जिसके पहियों से उड़ते धूल डस्ट जामपाली, कुडुमकेला, सराईपाली, बरघाट, फगुरम मोड़ यानी रेल्वे सायडिंग कारीछापर, टेरम, कंचनपुर फाटक के रास्ते घरघोड़ा बाईपास होते हुए शहर घरघोड़ा के तकरीब पन्द्रह वार्डो तक फैलते चली जाती है। परिणाम स्वरूप वायुमंडल में धूल के कण तो थोड़ी देर बाद उड़ते हैं पर कोयला लदी भारी वाहनों के ओव्हर लोड और वह भी बगैर तारपोलिन के उपर से रास्ते भर कोयला के चूर्ण गिरने से आगे पीछे से आ रही वाहनों से जिसे रौधते चले जाने से महीन चूर्ण वातावरण में उठने से धूल उड़ने का सिलसिला में निरंतर बनी रहती है। बरघाट कालोनी में एसईसीएल का उपक्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय मुख्य राज्य मार्ग में एक दीवार के आड़ में है जहां पूरे कार्यालय में धूल का अंबार लगा रहता है, फिर भी उन्हें धूल डस्ट दिखलाई नहीं देती। कालोनी का हाल भी बेहाल है। इसी तरह जामपाली, कुडुमकेला , पतरापाली, फगुरम व टेरम ग्राम को खेती बाड़ी खेत खलिहान कुंआ बावली तालाब सभी जगह धूल डस्ट से सराबोर है। इस मार्ग से जिला रायगढ़ व तहसील घरघोड़ा के प्रशासनिक अधिकारियों व क्षेत्रीय विधायक मंत्रियों तक आवाजाही करते हैं, पर धूल डस्ट उन्हें दिखलाई नहीं देती वह इसलिए कि वे सभी एसी युक्त बंद गाड़ियों से आवाजाही करते हैं। धूल डस्ट तो जो जमीन पर चलते हैं क्षेत्रीय ग्रामीण जन राहगीर व दुपहिए वाहन चालकों की आंख, नाक, कान व शरीर के विभिन्न अंगों में आत्मसात करते हैं, उन्हें पता है प्रदूषण, धूल डस्ट क्या है और यह सिलसिला माह दो माह का नहीं है। यह सिलसिला सालों से निरंतरता बनाये हुए हैं। उपक्षेत्र में धूल डस्ट को नियंत्रित करने के लिए बरघाट, टेरम और कुडुमकेला के जागरूक ग्रामीणों द्वारा एसईसीएल के खिलाफ अनेकों दफे आंदोलन प्रदर्शन व धरना कर चुके हैं। तब घरघोड़ा से प्रशासनिक अधिकारी आते हैं और सड़को पर जल छिड़काव करवाने का दिशानिर्देश कंपनी को देकर चले जाते हैं। पर पानी का टैंकर सिर्फ दिखाने के लिए चलाई जाती है। वह भी नियमित रूप से नहीं चलाई जाती। दिन प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है। कारगर कदम क्या हो सकता है यह शोध का विषय है।
बरघाट में कोयला परिवहन के कारण हर घड़ी लगती है जाम
बरौद कालरी:- बरौद उपक्षेत्र बरघाट से लेकर मुकेश के होटल तक विभिन्न कोयला व्यापारियों के कार्यालय उपस्थित है जहां से सैकड़ों खाली व कोयला लदी वाहनों के कागजात बनाये जाते हैं अक्सर देखा जाता है कि वाहन चालको द्वारा अपनी गाड़ियों को सड़क के दोनो किनारों पर जहां जगह दिखलाई देती है। गाड़ियां खड़ी कर बिल्टी बनवाने आ जाते हैं और जब तक वह पुनः अपने ड्राइविंग सीट पर आकर फिर अपने वाहन को आगे न बढ़ाये तब तक जाम लगी रहती है। बताया जाता है कि बिल्टी बनाने के बावजूद भी वाहन चालक बरघाट में ही अन्य कार्यो को लगे हाथ निपटाने में मशगूल हो जाने के परिणाम स्वरूप असमय हर घड़ी लग जाती है,जाम राहगीर व दुपहिये वाहन चालक तो किसी तरह निकल लेते हैं, फंस जाती है यात्री वाहने और चारपहिए वाली वाहने आधा घण्टे या कभी कभी एक घंटो तक की जाम लगी रहती है। जाम हटाने के लिए ना तो एसईसीएल की और ना ही घरघोड़ा पुलिस की टीम रहती है। स्वयं प्रभावितों द्वारा बड़ी मशक्कत से जाम को खुलवाई जाती है। यह अनोखा मंजर यहां दिन में और रात में कभी भी देखी जा सकती है।
यात्री बसे अक्सर परिवर्तित मार्ग से चली जाती है बरघाट में कोयला लदी वाहनों की एक के पीछे एक निरंतर चल रही हजारों गाड़ियों की पंक्ति टूटती दिखलाई ही नहीं देती अक्सर जाम असमय लगने से रायगढ़ धरमजयगढ़ या अम्बिकापुर धरमजयगढ़ कुडुमकेला बरौद घरघोड़ा आने वाली यात्री बसे अपने परिवर्तित मार्गो से जाती है इसी तरह रायगढ़ धरमजयगढ़ घरघोड़ा पत्थलगांव के रास्ते अम्बिकापुर जाने वाली यात्री बसे बरघाट में जाम की खबर से घरघोड़ा जयस्तंभ से ही लैलुंगा के रास्ते चल पड़ती है इधर टेरम फगुरम बरघाट कुडुमकेला गेरसा के यात्रीगण बसों का राह जोहते ही रह जाते है |
जाम की वजह से चिकित्सा वाहन, प्रशासनिक अधिकारी की वाहन हो या जनप्रतिनिधियों की ही क्यों ना हो यहां आकर सभी वर्गो के लोगों को जाम में घंटों फंसते देखा जा सकता है कई यात्री रेल्वे के रिजर्वेशन से ही समय पर रायगढ़ स्टेशन नहीं पहुंच पाने से जिनकी ट्रेन छूट जाती है!
ग्रामों में उड़ते धूल डस्ट से लोगों का हुआ जीना बेहाल जामपाली, बरौद व बिजारी खदानों से निकलने वाली कोयला लदी भारी वाहनों के उड़ते धूल डस्ट से लोग हलाकान व परेशान हो उठे हैं। एसईसीएल की तीनों खदानों से राज्य मार्ग में सैकड़ों नहीं हजारों हजार गाड़ियां एक के बाद एक निरंतर दिन रात आवाज करते ही रहती है, जिसके पहियों से उड़ते धूल डस्ट जामपाली, कुडुमकेला, सराईपाली, बरघाट, फगुरम मोड़ यानी रेल्वे सायडिंग कारीछापर, टेरम, कंचनपुर फाटक के रास्ते घरघोड़ा बाईपास होते हुए शहर घरघोड़ा के तकरीब पन्द्रह वार्डो तक फैलते चली जाती है। परिणाम स्वरूप वायुमंडल में धूल के कण तो थोड़ी देर बाद उड़ते हैं पर कोयला लदी भारी वाहनों के ओव्हर लोड और वह भी बगैर तारपोलिन के उपर से रास्ते भर कोयला के चूर्ण गिरने से आगे पीछे से आ रही वाहनों से जिसे रौधते चले जाने से महीन चूर्ण वातावरण में उठने से धूल उड़ने का सिलसिला में निरंतर बनी रहती है। बरघाट कालोनी में एसईसीएल का उपक्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय मुख्य राज्य मार्ग में एक दीवार के आड़ में है जहां पूरे कार्यालय में धूल का अंबार लगा रहता है, फिर भी उन्हें धूल डस्ट दिखलाई नहीं देती। कालोनी का हाल भी बेहाल है। इसी तरह जामपाली, कुडुमकेला , पतरापाली, फगुरम व टेरम ग्राम को खेती बाड़ी खेत खलिहान कुंआ बावली तालाब सभी जगह धूल डस्ट से सराबोर है। इस मार्ग से जिला रायगढ़ व तहसील घरघोड़ा के प्रशासनिक अधिकारियों व क्षेत्रीय विधायक मंत्रियों तक आवाजाही करते हैं, पर धूल डस्ट उन्हें दिखलाई नहीं देती वह इसलिए कि वे सभी एसी युक्त बंद गाड़ियों से आवाजाही करते हैं। धूल डस्ट तो जो जमीन पर चलते हैं क्षेत्रीय ग्रामीण जन राहगीर व दुपहिए वाहन चालकों की आंख, नाक, कान व शरीर के विभिन्न अंगों में आत्मसात करते हैं, उन्हें पता है प्रदूषण, धूल डस्ट क्या है और यह सिलसिला माह दो माह का नहीं है। यह सिलसिला सालों से निरंतरता बनाये हुए हैं। उपक्षेत्र में धूल डस्ट को नियंत्रित करने के लिए बरघाट, टेरम और कुडुमकेला के जागरूक ग्रामीणों द्वारा एसईसीएल के खिलाफ अनेकों दफे आंदोलन प्रदर्शन व धरना कर चुके हैं। तब घरघोड़ा से प्रशासनिक अधिकारी आते हैं और सड़को पर जल छिड़काव करवाने का दिशानिर्देश कंपनी को देकर चले जाते हैं। पर पानी का टैंकर सिर्फ दिखाने के लिए चलाई जाती है। वह भी नियमित रूप से नहीं चलाई जाती। दिन प्रतिदिन बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए कारगर कदम उठाने की आवश्यकता है। कारगर कदम क्या हो सकता है यह शोध का विषय है।